मैं
मैं हूँ
तो लाठी है चश्मा है
मैं हूँ
तो सेतु है जुगनू है
मैं हूँ
तो प्यास है पगडंडी है
मैं हूँ
तो कोशिश है पतंग उड़ाने की
मेरे होते वैशाख में बादल
बिन बरसे नहीं जा सकते
३० मार्च २००९ |
डॉ. सरोज
कुमार वर्मा
की तीन छोटी कविताएँ
२० अगस्त १९६१, दिपराही
(बिहार) में जन्मे डॉ. सरोज कुमार वर्मा की
रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, सम्मानित और
पुरस्कृत
संप्रतिः अध्यापन
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पत्नी
पत्नी है तो रंग है गंध है
पत्नी है
तो मौसम है मंज़र है
पत्नी है
तो प्रेरणा है परछाईं है
पत्नी है
तो हौसला है क्षितिज छूने का
पत्नी के साथ
जाया जा सकता है
किसी भी दुर्गम रास्ते पर
३० मार्च २००९ |
दादी
दादी है
तो सीखे हैं। कहानियाँ हैं
दादी है
तो गंगा है। तुलसी है
दादी है
तो जड़े हैं। ज़मीन है
दादी है
तो चर्चे हैं बाबा के,
दादी के होते
बाबा स्वर्गीय नहीं हो सकते।
१९ जनवरी २००९ |
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माँ
माँ है
तो लोरी है। शगुन है
माँ है
तो गीत है। उत्सव है
माँ है
तो मंदिर है। मोक्ष है
माँ है
तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं।
१९ जनवरी २००९ |