सीमा -१
तुमने सीमा बना ली है
मैंने तोड़ दी है सीमाएँ
तुम गमों में कैद हो
मैं गमों के लिये आज़ाद हूँ..
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राजीव रंजन
प्रसाद की क्षणिकाएँ |
सीमा -२
ये मेरा दिल था
और तुम्हारे साथ मुहब्बत का धरातल
सरसों का खेत हो गया था
बीचों बीच ये कैसी सीमा
मेरा कलेजा काट कर सरहद बना दी है.. |
सीमा -३
तुम थे तो सपनों के पास सीमा नहीं थी
तुम नहीं हो
तो सपनों की सीमा तुम हो..
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सीमा -४
आओ उदासियों
मेरे गिर्द अपने हाथ थाम
एक गोल घेरा बना लो
मुझे सीमा चाहिए है
पिंजरे का तोता उडान का सपना भूल चुका
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सीमा -५
सीमा जब टूटेगी
तो क्या जीने की फिर भी सूरत होगी?
बाँध टूटते हैं
तो विप्लव आते हैं..
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