रश्मिप्रभा
कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती
सरस्वती प्रसाद की बेटी होने के कारण नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा
नंदन पन्त ने किया और नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे
नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन", इस
रचना पांडुलिपि उन्हें विरासत मे मिली।
अपने विषय में वे कहती हैं कि
अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे
अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके
अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं।
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दस क्षणिकाएँ
मेरी तपस्या की अवधि लम्बी
रही,
रहा घनघोर अँधेरा,
सुबह - नए प्रश्न की शक्ल लिए
खड़ी रही...
वो तो चाँद से दोस्ती रही
इसलिए सितारों का साथ मिला -
तपस्या पूरी हुई,
सितारे आँगन में उतर आए!
(२)
तुमने मुझे 'अच्छी' कहा
तो घटाएँ मेरे पास आकर बैठ गईं,
मेरी सिसकियों को अपने जेहन में भर लिया...
सारी रात घटाएँ रोती रहीं,
लोग कहते हैं -
'अच्छी बारिश हुई'
(३)
घर तो यहाँ बहुत मिले
पर,
हर कमरे में कोई रोता है!
मेरे पास कोई कहानी नहीं,
कोई गीत नहीं,
मीठी गोली नहीं,
चाभीवाले सपने नहीं...
कैसे चुप कराऊँ?
सपने कैसे दिखाऊँ? -
कोई सोता भी तो नहीं...
(४)
समुद्र मंथन से क्या होगा !
क्या होगा अमृत पाकर?
क्या मन की दीवारें गिर जाएँगी?
क्या जीने से उकताहट नहीं होगी?
क्या अमृत तुम्हारा स्वभाव बदल देगी?
... इन प्रश्नों का मंथन करो
संभव हो - तो,
कोई उत्तर ढूँढ लाओ!
(५)
अरसा...जाने कितना अरसा हुआ
कोई चिठ्ठी लेकर डाकिया नहीं आया
लेटर बौक्स में पड़े रहे-
बिजली बिल, मोबाइल बिल
या कुछ प्रचार पत्र...
जानती हूँ,
सबकी अपनी दुनिया है
अपनी खुशियाँ, अपने दायरे
अपने गिने-चुने सम्बन्ध-
तो फिर ये अकेलापन क्यों?
(६)
जब असफलता निराश करे
तो कोई ख़्वाब बुनो
मैं दुआ हूँ-
उन ख़्वाबों की ज़मीन पर
जहाँ निराशा अपनी असफलता पर रोती है
और तुम्हारी आँखों में
सुबह की किरणें जगमगाती हैं
मेरी मानो,
ख़्वाबों को मकसद बना लो!
(७)
कुछ शब्द तुम्हारे कमरे में
हैं
कुछ मेरे ख़यालों में...
इनकी खुशबू ने हमे मिलाया
और सपनों का रिश्ता बनाया,
फिर क्यों बन जाते हैं हम अजनबी
शब्द, ख़्वाब, ख़यालों की दस्तकें तो
हमारे साथ ही होती हैं!
(८)
एहसासों की साँकलें खोल
पहुँची तुम्हारे आँगन
धूप की उजास
आँगन के साथ
मेरे हमसफ़र बन बैठे
(९)
जब असफलता निराश करे
तो कोई ख़्वाब बुनो
मैं दुआ हूँ-
उन ख़्वाबों की ज़मीन पर
जहाँ निराशा अपनी असफलता पर रोती है
और तुम्हारी आँखों में
सुबह की किरणें जगमगाती हैं
मेरी मानो,
ख़्वाबों को मकसद बना लो!
(१०)
कुछ शब्द तुम्हारे कमरे में
हैं
कुछ मेरे ख़यालों में...
इनकी खुशबू ने हमे मिलाया
और सपनों का रिश्ता बनाया,
फिर क्यों बन जाते हैं हम अजनबी
शब्द, ख़्वाब, ख़यालों की दस्तकें तो
हमारे साथ ही होती हैं!
१८ जनवरी २०१०
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