प्रो. विश्वंभर
शुक्ल
की रचनाएँ |
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बरस रही है आग (छह
क्षणिकाएँ)
१
तनी गरमी, लू-लपट
बरस रही है आग
फिर भी तो फुरसत नहीं
भाग, ज़िंदगी भाग !
२
बिजली, पंखा, कूलर, ए सी
खस-खस वाली घास
हुई ज़िन्दगी यार, चिपचिपी
गरम गरम एहसास !
३
हाँफ रहे कूचे-गलियारे
धूल फाँकते गाँव
पसर गई निदिया बेखटके
मिली नीम की छाँव !
४
छापर के नीचे सोये हैं
बचपन और दुलार
शीतल आँचल
शिशु का संबल
माँ तेरा आभार !
५
तपती दुपहर, गरम पसीना
और खेत में काम
मेहनत वाले
हाथ न रुकते, क्या छैंया
क्या घाम!
६
थमती कहाँ ज़िंदगी यारों
नरम गरम हैं रूप
आओ कोई छाँव तलाशें
बहुत कड़ी है धूप !
१५ अप्रैल २०१३ |