१-
बाप पूरा फुँकने भी न पाया था
कि सुनकर आँसू सूख गए
कुछ दुकानें
मेरे भी हिस्से आई हैं।
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मनु मनस्वी
की
बीस क्षणिकाएँ
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२-
माँ ने
अपना तन जला
पकाई थीं रोटियाँ केवल
नादान बच्चे
अचार पे रूठ गए। |
३-
मैं जीता, तुम हारी
चलो अब तुम्हारी बारी
लुकाछिपी का खेल जिंदगी।
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४-
मैं हूँ आइना
दिखाऊँगा सच ही
हाथ में पत्थर होंगे,
तो वो भी।
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५-
शाम जब ढलने लगे
एक दीप जलाना तुम
सुबह के भूले
लौटते ही होंगे। |
६-
जिस थाली में खाया
उसी में छेद किया
ज्यादा नमक स्वाद बिगाड़ गया। |
७-
मुश्किल से
इक लम्हा हाथ आया है
सोचता हूँ
किस तरह बिताऊँ इसे
मेरे सोचने से पहले ही
गुजर गया बेचारा। |
८-
पिछली बार टूटा था काँच
और इस बार टूटा है पत्थर
उनके कहने पर
दिल बदला था मैंने।
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९-
मैं जब
बुनने लगा सपने
मिला लिए कुछ तार हकीकत के
चादर का वही हिस्सा चुभता है
आँखों में। |
१०-
तुम दूध के धुले
हम दूध के जले
माँ के लिए दोनों भले। |
११-
उसकी मर्जी के बिना
हिलता नहीं एक भी पत्ता
हमने खुदा नहीं देखा
बॉस देखा। |
१२-
जो चाहा वो पाया
पर देखो तो हाथ क्या आया
मुट्ठी भर रेत थी
फिसल गई। |
१३-
तिनका-तिनका जोड़ा
पर
न समेट सका अपना घर
बच्चे उड़ना जो सीख गए अब। |
१४-
बेवजह मुलाकात की
कुछ अपनों की बात की
गाड़ी-
देर से आएगी शायद।
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१५-
बाहर का दिया बुझ गया
बाप की साँस
अटकी थी अंगूरों पर
न ला सका मैं तो टूट गई। |
१६-
दोस्तों की मेरे रही
यही एक फितरत
आए और
काट गए कुछ वक्त। |
१७-
ढूँढते रहे हैं बेगानों में
अपना इक अदद सा नाम
जूते भी
बाप के पहने हैं हमने।
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१८-
उखाड़ लिए
सारे रिश्ते खेतों से
गाँव के सिक्के थे सारे
शहर में न चले।
२७ मई
३०१३ |
१९-
गृहस्थी को
भरता रहा उम्र भर
बच्चे फिर भी रहे भूखे
सुरसा का मुँह था,
बढ़ता रहा।
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२०-
हलक में अटका हैं
चाँद जाने कितनी देर से,
न निगलता हूँ,
न ही उगल पाता हूँ इसे
तेरी तारीफ में
एक ही शब्द सूझा था मुझे। |