परछाई
परछाई उतनी ही जीवित है
जितने तुम
तुम्हारे आगे पीछे
या तुम्हारे भीतर छिपी हुई
या वहाँ जहाँ से तुम चले गए हो। |
पहाड़
पहाड़ पर चढ़ते हुए
तुम्हारी साँस फूल जाती है
आवाज़ भर्राने लगती है
तुम्हारा कद भी घिसने लगता है
पहाड़ तब भी है जब तुम नहीं
हो |
थरथर
अंधकार में से आत संगीत से
थरथर एक रात मैंने देखा
एक हाथ मुझे बुलाता हुआ
एक पैर मेरी ओर आता हुआ
एक चेहरा मुझे सहता हुआ
एक शरीर मुझमें बहता हुआ
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शब्द
कुछ शब्द चीखते हैं
कुछ कपड़े उतार कर
घुस जाते हैं इतिहास में
कुछ हो जाते हैं ख़ामोश। |
रेल में
एकाएक आसमान में
एक तारा दिखाई देता है
हम दोनों साथ-साथ
जा रहे हैं अंधेरे में
वह तारा और मैं |
प्रतिकार
जो कुछ भी था जहाँ-तहाँ
हर तरफ़
शोर की तरह लिखा हुआ
उसे ही लिखता मैं
संगीत की तरह |