१
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दिलाता रहा याद
रह गया है कुछ
सतत अधूरा।
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रश्मि
बड़थ्वाल की क्षणिकाएँ |
२
ज्ञात हुई
बुरे दिनों में
अच्छे दिनों की कीमत।
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३
हे प्रभु
कितने अधर्म हुए
धर्म के नाम पर!
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४
रखे काग़ज़ पर
काले-काले शब्द
मन में उग आए
कपास से हल्के
बर्फ़ से उजले फूल।
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५
सैंकड़ों साल के
युद्ध की थकान है
मेरे भीतर
और हज़ारों साल तक
लड़ते रहने की ऊर्जा भी।
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६
साथ हों
असह्य दबाव
और एकाकीपन
तब लेखनी हो जाती है
साँस लेने का साधन।
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७
मैं तिनके-तिनके में उगूँगी
तेरे सख्त तलवे सहलाऊँगी
और बार-बार तुझे याद दिलाऊँगी
कि तू मनुष्य है।
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८
तुमने आँकड़े जुटाए
मैंने अनुभव
साथ चले हम
समानांतर रेखाओं की तरह।
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९
रोने की सामर्थ्य चुक गई
तब मैंने
सीख लिया दर्द पर हँसना। |
१०
संबंधों के शव ढोते
करते रहे आजीवन
भरा-पूरा जीवन
जीने का ढोंग
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११
कुछ सपने
आँखों में उगाते नहीं
करकते हैं
पलकों के भीतर-भीतर।
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१८ फरवरी २००८
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१२
तुम कितने महान हो
तुम्हारे हाथ में तलवार भी थी और सुई भी
लेकिन तुमने गर्दन उड़ाने की बजाय
केवल मेरी पलकें और होंठ सिले। |