१
अमीरी
रुपए-पैसे से
जो अमीरी मिलती है
वो मुझको नहीं मिली...
पर एक और अमीरी मिल गई
जो रुपए-पैसे की अमीरी से भी
अमीर है
कविता-कविता
अमृता के साथ की
अमीरी...!!! |
इमरोज़ की क्षणिकाएँ |
२
महक
मनचाहे की एक महक
होती है
जिसके साथ
घर, ज़िंदगी
महकी-महकी
रहती है...
अनचाहे की
कोई महक नहीं होती... |
३
सभ्यता
इतिहास कहता है
कि सभ्यता से पहले
बंदा जंगली था, वहशी था
पर
१९४७ कह रहा है
कि सभ्यता के बाद भी
बंदा जंगली भी है
और वहशी भी... |
४
रंग
काले रंग को
कभी भी कोई रंग
नहीं रंगता...
काली सोच को भी
ज़िंदगी का कोई रंग
नहीं रंगता... |
५
ज़िंदगी
जीने लगो
तो करना
फूल ज़िंदगी के हवाले
जाने लगो
तो करना
बीज धरती के हवाले... |
६
तेरा भला करे
अमृता जब भी खुश होती-
मेरी छोटी-छोटी बातों पर
तो वो कहती-
वे रब तेरा भला करे।
और मैं जवाब में कहता हूँ-
मेरा भला तो
कर भी दिया रब ने
तेरी सूरत में
आकर... |
१२ अक्तूबर २००९ |
७
हमउम्र
ज़िंदगी खेलती है
पर हमउम्रों से...
कविता खेलती है
बराबर के शब्दों से, ख़यालों से
पर अर्थ खेल नहीं बनते
ज़िंदगी बन जाते हैं...
रात-दिन रिश्ते भी खेलते हैं
सिर्फ़ मनचाहों से
उम्रें कोई भी हों
ज़िंदगी में मनचाहे रिश्ते
अपने आप हमउम्र हो जाते हैं... |