रवीन्द्रनाथ ठाकुर
भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता, बंगाल के कलकत्ता नगर में जन्मे
रवीन्द्रनाथ टेगोर ने (१८६१–१९४१) आठ वर्ष की आयु से कविता
लिखना प्रारंभ किया और विश्व में अपनी कार्यो से भारत का नाम
उज्जवल किया।
उनके पहले तीन काव्य संग्रहों मानसी (१८९०), चित्रा (१८९५) और सोनार तरी
(१८९५) में सामान्य भाषा का अधिक
प्रयोग हुआ है पर धीरे–धीरे उनकी रचनाएँ साहित्यिक होती चली
गयीं। १९१२ में उन्होंने ब्रिटेन और संयुक्तराष्ट्र अमरीका की
यात्रा की और इसी वर्ष उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह गीतांजलि
प्रकाशित हुआ, जिसे १९१३ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया
गया।
साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने कला, संगीत और शिक्षा के क्षेत्र
में भी उल्लेखनीय कार्य किये। उन्होंने भारत में कला की अमूर्त
शैली को विकसित किया। रवींद्रसंगीत नामक संगीत की एक नयी विधा
को जन्म दिया और शांति निकेतन जैसे आदर्श विश्वविद्यालय की
स्थापना की। |
फागुन लगेछे बने
बने
ओरे भाई फागुन लगेछे बने बने
डाले डाले फुले फले
पाताय पाताय रे
आडाले आडाले कोने कोने
रंगे रंगे रंगीलो आकाश
गाने गाने निखिल उदास
येन चल चंचल
नव पल्लव दल मर्मरे मोर मने मने
हे रो अवनीर रंग
गगनेर करे तपोभंग
हासिर आघाते तार
मौन रहे ना आर केंपे केंपे ओठ खने खने
बतास छुटिछि बनमय रे
फुलेर न जाने परिचय रे
ताइ बुझि बारे बारे
कुंजेर द्वार द्वारे शुधारे फिरिछि जने जने
-रवीन्द्रनाथ
ठाकुर |
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वन उपवन में
फागुन
अरे भाई, वन
उपवन में फागुन छाया
डाल डाल में
फूल पात में
हर कोना खिल कर भरपाया
रंगों से आकाश रचा
गीतो में सारा विश्व हंसा
चंचल नव पल्लव दल में —
मेरा मन भी भरमाया
धरती का रूपरंग
नभ का करे तपोभंग
मौन पार कर —
मुखर हास ने अधरों को भी कँपाया
पवन बही वनमय
फूलों का परिचय
माँग रही बार बार
कुंज कुंज द्वार द्वार जन जन पुछवाया
हिंदी रूपांतर-
पूर्णिमा वर्मन |