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काव्यचर्चा

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प्रेम ने उकसाया...
कि जिनकी संवेदनाएँ जिंदा हैं मैं उनके लिये लिखूँ


अनुभूति में नये लेखकों को प्रेरित करने और उनका मार्गदर्शन करने के उद्देश्य से प्रकाशित लेखमाला एक कविता बने न्यारी के लिए आभार! मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि, प्रकाशित लेखमाला सचमुच ही कविता लिखने के शौकीनों को प्रेरित कर उनके काव्य लेखन को और गतिशील करेगी।

मैं एक सामान्य काव्य प्रेमी, अपने कविमन के साथ जी रहा हूँ। प्रेम में मेरी गहरी आस्था है। काव्य प्रेम ने मुझे लिखने के लिये उकसाया कि जिनकी संवेदनाएँ अब तक जिंदा हैं मैं उनके लिये कविता लिखूँ। प्रकृति सौन्दर्य के विषय में कोई अच्छी कविता पढ़कर मेरा ध्यान, प्रकृति के छिपे हुए सौन्दर्य की ओर जाने लगता है। इस प्रकार अनायास ही मेरे मन से कविता के बोल प्रस्फुटित होने लगते हैं और उन्हें मैं कागज़ पर उतारने लगता हूँ।

काव्य का प्रमुख तत्व भाव है और हृदय का भावनाओं से गहरा संबंध होता है। भाव से रहित शब्दाडम्बर मात्र हृदय को विभोर नहीं कर सकते। मैं अपने को इस बारे में भाग्यशाली समझता हूँ क्योंकि मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ इसीकारण शायद मेरा रूझान काव्य की ओर अधिक रहा है। बचपन में छुट्टी के दिन जब माँ विद्यालय का गृह पाठ करने के लिये कहती तो मैं अपने छोटे से बगीचे में जाकर एकांत में बैठ केवल हिन्दी की कविताओं का ही पठन कर अपने गृहपाठ का उत्तरदायित्व सम्पन्न कर लेता था।

जितने ही हम भावप्रधान होंगे उतनी ही हम अच्छी कविता का सृजन कर सकेंगे। यह सोलह आने सच है कि भावों और विचारों की उच्चता से काव्य में भी गरिमा आती है क्योंकि सद्विचारों की अभिव्यक्ति कविता को ऊँचा उठा देती है। इस प्रकार हम असुंदर और लघु में भी सुंदर और विराट का दर्शन कर सकते हैं।

प्राथमिक शिक्षा मुंबई से तथा माध्यमिक और उच्च माध्यमिक श्क्षिा अपने पैतृक गांव ढिंगवस, जिला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश से पूर्ण कर मैं पुनः मुंबई आ गया और स्नातक की पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से पूर्ण कर अपनी गृहस्थी में उलझ गया किंतु तब भी मेरा काव्य और साहित्य जगत से लगाव कम नहीं हुआ। जहाँ भी कवि सम्मेलन होता वहाँ सुनने पहँुच जाता।

शहर में जहाँ कहीं पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन होता वहाँ जाकर साहित्य की अच्छी पुस्तकों की खोज करने लगता। मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित प्रेमपत्र पद्मावत में श्रृंगार के संयोग एवम वियोग पक्ष में हृदयहारी एवम मार्मिक चित्रण तथा हिन्दी के अन्य महान कवियों की रचनाएँ समय समय पर मुझे अभिभूत तथा काव्य लेखन के लिये प्रेरित करती रही है। गजानन माधव मुक्तिबोधजी की कविता के भाव – "मुझे कदम कदम पर चौराहे मिलते हैं बाहें फैलाये" मुझे सदैव प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहे हैं।

इस प्रकार कवि सम्मेलानों में और रेडियो, दूरदर्शन पर कवियों के प्रभावशाली वाचन पर ध्यान देना चाहिये। कुछ कवियों की कविताओं के रिकार्ड और टेप भी मिलते हैं जिनका सुविधानुसाार उपयोग किया जा सकता है जो हमें प्रेरित और उद्बोधित कर हमारे लेखन को निखारने में सहायक सिद्ध हो सकते हें। कविता लेखन मेरे दैनिक जीवन में बाधक नहीं अपितु सहायक ही सिद्ध हुई है।

कविता का मुख्य उद्देश्य काव्य–सौन्दर्य की रसानुभूति द्वारा आनंद प्राप्त कराना है। यह आनन्द मूलतः अर्थ का आनंद है जो कविता में अन्तर्निहित रहता है। बार बार पढ़ने से लिखने से ही अच्छी कविता का सौन्दर्य सहज ग्राह्य होता है। एक प्रेमी अपने प्रियतम के नाम को बार बार लिखता है और मिटा देता है यह प्रक्रिया प्रेमी के प्रेम को निखारने एवम् उस प्रेम को दृढ़ करने में जिसप्रकार सहायक होती है, ठीक उसी प्रकार कविता को बार बार लिखने, पढ़ने और उसमें आवश्यक संशोधन से कविता का स्वरूप और निखर उठता है।

मैं जिस विषय पर कविता लिख रहा होता हूँ, पहले उस विषय के बारे में जानकारी प्राप्त कर फिर उसका चिंतन, मनन कर उस वस्तु्रविषय के प्रति स्वयं को निरूपित कर मैं कविता लिखता हूँ। कविता लिखते समय जोड़ तोड़ जहाँ संभव है वहाँ अवश्य करता हूँ तथा उसी अनुसार उपर नीचे संशोधन करता हूँ। पहली ही बार में मैं कविता को अंतिम रूप नहीं देता। उसे बार बार पढ़ता हूँ और आवश्यकतानुसार उसके स्वरूप को निखारता हूँ और अंतिम रूप देता हूँ। मेरे विचार से कविता लिखने के लिये दुखी रहना आवश्यक नहीं है। सुख के क्षणों में भी एक अच्छी कविता का सृजन किया जा सकता है। कल्पना की उड़ान हृदय की अनुभूति पर आधारित हो तभी वह सार्थक है। कोरी कलाबाजी पर आधारित कल्पना कविता के रस को भंग करती है, पुष्ट नहीं।

मैं अपनी कविता को अपने सहकर्मी तथा अपने मित्रों, परिवार के सदस्यों को सुनाता हूँ। उनके द्वारा मुझे बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यहाँ तक की मेरा बेटा तथा बेटी जो क्रमशः ११ और ९ साल के हैं, मेरी कविता को बार बार पठन कर मुझे प्रोत्साहित करते हैं। इसके साथ ही कभी–कभी मैं पत्र लिखते समय उचित अवसर को ध्यान में रख अपनी या किसी अन्य कवि की काव्य पंक्तिया जो मेरे मन को छू जाती है उन्हें अपने पत्र में समाहित कर काव्य के आनंद को लूटने का प्रयत्न करता हूँ। उपरोक्त सभी बात कर मेरे कविमन को पोषक तथा मुझे काव्य लेखन की ओर प्रोत्साहित करती है।

इसमें दो राय नहीं समयानुसार बदलनेवाली, अपने व्यवसाय व कार्यक्षेत्र से संबंधित व सच बोलने वाली कविताएँ हमें लिखनी चाहिये। समाज को योग्य दिशा दिखाने का काम कवि का होता है। हम अपने अन्तर्मन की आवाज की परख अपने स्वतंत्र शैली में कविता का सृजन करना चाहिये। मैं जो भी लिख रहा हूँ यह किसी पुरस्कार की अपेक्षा रखकर नहीं अपितु जिनकी संवेदनाएँ अबतक जिंदा हैं उनके लिये लिख रहा हूँ।

साहित्य मनुष्य की संवेदनाओं का व्यवहार है। हमें जो अच्छा लगे, जो उचित व योग्य हो तथा जिसके द्वारा हमें मानसिक सुख व समाधान की प्राप्ति होती हो उसका लेखन हमें अवश्य करना चाहिये। काव्य लेखन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहे, निराश न हो उसमें एकदिन निखार अवश्य आयेगा यह दृढ़ विश्वास कभी डिगने न पाये।

जिस प्रकार सागर में अनेक मूल्यवान निधियाँ एवम दुर्लभ वस्तुएँ छिपी होती है जो सामान्य व्यक्ति के लिये अप्राप्य है किंतु गोताखोर उन्हें अपने निरंतर प्रयास से टोह लगा उन्हें प्राप्त कर लेते है, ठीक उसीप्रकार हर व्यक्ति के अंदर एक कविमन छिपा होता है जिसे हमें स्वयं टटोलना और उसे विकसित करना है, क्योंकि जहाँ चाह वहाँ राह। तुलसीदासजी के शब्दों में 'जापर जाकर सत्य सनेहू सो तेहि मिलही न कछु सदेहू' यदि आपका काव्य से सच्चा प्रेम है तो वह आपको एक दिन अवश्य प्राप्त होगा। अंत में यह आपकी और हमारी लगन और सेवा पर निर्भर करता है।

शुभकामनाओं सहित
सत्यनारायण सिंह

 

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