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विनयकांत

 

  फागुन

बसंत कमान सो तीर छुट्यो
फागुन में बिंध जावत है।

करघनी, अँगूठी, पैंजनियाँ
बजट्टी, बिछुड़ी, नथनियाँ
बन गोपी सब इतरावत है।

भुजबंद मुक्ताहार वेसर गजरो
घुँघरू, कुंडल, चौसर, कजरो
बन गोप मद मस्त लहरावत है।

टीको बिंदिया को छेड़ रह्यो
कंगन चुड़ी पर चढ़ बैठ्यो
बौराये जुगल पारावत है।

राधा की देह को भाग जग्यो
अपनो ही मन कान्हा सों लग्यो
नज़र सु नज़र चुरावत है।

कित जाके सहेजे तनु को
मन मति मदन बाणाहत है।
बसंत कमान सो तीर छुट्यो
फागुन में बिंध जावत है।

१ मार्च २००६

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