स्वयंप्रभा झा
शिक्षा-
बी. एससी, स्नातकोत्तर साफ्टवेयर
इंजिनियरिंग का डिप्लोमा।
प्रकाशित कृतियाँ-
कविता संग्रह- 'कोंपल' और 'चारियाबाती'
कहानी संग्रह- 'गबाक्ष्य'।
बालगीत संग्रह- 'चुलबुल-बुलबुल' नाम से ।
मैथिली कविताओं का संग्रह- 'कलश'।
संप्रति-
लीड्स एशियन स्कूल पटना में शिक्षिका।
ई मेल-
s_prabha2006@yahoo.co.in
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सृष्टि सुहागन
अगर अभी भी आकुल शबनम ढलती रातों
में
और शेष सिंदूरी आभा स्वर्णिम प्रातों में
अगर शेष है पुलक अभी भी कोमल गातों में
और शेष है नेह अगर सुंदर सौगातों में
तो समझो सृष्टि सुहागन साड़ी धानी है
ये धरा अभी भी अंबर की
पटरानी है।
अगर अभी भी शेष पहाड़ों में स्पंदन है
मलय पवन कर रहा नमन? सादर अभिनंदन है
पंचभूत निर्मित मानव-मन निर्मल पावन है
षड् ऋतुएँ अनुकूल, प्रात संध्या मनभावन है
तो समझो सृष्टि सुहागन, साड़ी धानी है
ये धरा अभी भी अंबर की
पटरानी है।
अगर सूर्य का अर्चन करते कमल तड़ागों में
चीन तमस चिल्लाने का दम शेष चिरागों में
अगर अभी भी गाया करती कोयल बागों में
भीगा करती अगर ये धरती समरस फागों में
तो समझो सृष्टि सुहागन, साड़ी धानी है
ये धरा अभी भी अंबर की पटरानी है।
पतझड़ में नव आशाओं की डाली गाती है
नव कोंपल औ' कलिका उल्लासों की पाती है
हेमंत, शिशिर ले उत्सव के दिन आता है
ऋतुराज अंजुरी भर-भर पुष्प लुटाता है
तो समझो सृष्टि सुहागन,
साड़ी धानी है
ये धरा अभी भी अंबर की पटरानी है।
अगर हवाएँ गीत प्रणय के गाती हैं गुनगुन
और गूँजती है लहरों के नूपुर की रुनझुन
फूल अगर इठलाते, भँवरे बलि-बलि जाते हैं
मुस्काती हैं कलियाँ, पत्ते जश्न मनाते हैं
तो समझो सृष्टि सुहागन, साड़ी धानी है
ये धरा अभी भी अंबर की पटरानी है।
अगर चाँदनी देख कुमुदिनी बौराई झूमे
और तरंगिनी उमग-उमग सागर के तट चूमे
अगर घटाएँ उमड़ें, गिरि के गलबहियाँ डालें
और बरस कर बूँदें भू का आलिंगन पा लें
तो समझो सृष्टि सुहागन, साड़ी धानी है
ये धरा अभी भी अंबर की पटरानी है।
९ मई २००६
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