डॉ. धर्मेन्द्र
पारे
जन्म- २१ मार्च
१९६७ को हरदा मध्यप्रदेश में
शिक्षा- एम ए, पीएच डी
प्रकाशित रचनाएँ-
बीसवीं तारीख के आसपास तथा समय रहते काव्य संग्रह,
कोरकू देवलोक शोध
संप्रति- सहायक प्राध्यापक हिंदी शासकीय महाविद्यालय हरदा
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कहो कहाँ हो आमेना
कहो कहाँ हो
आमेना शब्दों से बहुत प्यार करती थी
क्या शब्दों में ही खो गई
बहुत से शब्दों को मैंने पुकारा
आमेना उन लफ्जों के भीतर
से तुम नहीं बोलती
कहाँ हो आखिर तुम आमेना,
आमेना तुमने तो कहा था
लोककथाओं की परियों की तरह
तुम्हारी जान नज्मों में अटकी है
धरती पर जिस लम्हा नज्म खतम होगी
उस घड़ी तुम भी खतम हो जाओगी
कहाँ हो आखिर तुम, आमेना
कई शब्दों को हौले हौले
कई कई रातों तक तराशा मैंने
तुम कहीं क्यों नहीं उभरती,
आमेना कितने शब्दों को कुरेदा
कई शब्दों का हृदय चीरकर देखा
कई शब्दों को
फूलों के बीच छुपाया
कई शब्दों को शबनम में पकाया
तुम कहीं भी मुकम्मल नहीं होती
क्या शब्दों से परे हो गई हो आमेना
इतनी जल्दी
सात जनम भी खत्म हो जाते हैं
क्या ऐसे ही बहुत याद आती हो आमेना
बहुत बहुत ज्यादा
हम शब्दों को खटखटाते हैं किवाड़ों की तरह
पूछते हें पता तुम्हारा
शब्दों की दुनिया तो बहुत बड़ी है
बहुत कठिन है
क्या शब्दों से बड़ी हो गई हो तुम आमेना
क्या इसे ही शब्दातीत कहते हैं आमेना
१ जुलाई
२००६ |