प्रदीप कुमार
जन्म- २३ अगस्त
१९५६ को धामपुर- बिजनौर, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा- लखनऊ मैडिकल कॉलेज से सन् १९८३ में बाल-रोग चिकत्सा
में एम-डी,
कार्यक्षेत्र- तेरह वर्षों तक अपनी डाक्टर पत्नी किरन सहित
गढ़वाल - हिमालय - उत्तरांचल, में स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम
से सामाजिक कार्य किया।
आजकल पत्नी और दो बच्चों सहित कनाडा प्रवास जहाँ निजी
एक्युपंक्चर की प्रैक्टिस के अलावा विभिन्न शिक्षण संस्थाओं
में अध्यात्म एवं ध्यान के ऊपर चर्चाओं और कार्यशालाओं का
आयोजन। लेखन का कारण बरसों से हृदय में अनुभव होते हुए आनन्द
को प्रकट करने की इच्छा। लेखन न तो कुंठा और तनाव से जन्मी एक
सृजन प्रक्रिया है और न ही स्वांत: सुखाय की अनुभूति का
प्रयत्न।
प्रकाशित कृतियाँ-
भारत एवं कनाडा दोनों देशों की विभिन्न पत्रिकाओं में हिन्दी
एवं अंग्रेज़ी भाषा में कविताओं का प्रकाशन
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एक साँझ
गर्मियों की एक साँझ अनाम
रक्तिमय सूर्य की चादर पहने
तन पर इन्द्र धनुषी मेघों के गहने
आ रही है नीरव पाँव से
रात्रि का निमंत्रण लेकर
जुगनुओं के दीप
अँधेरे में झिलमिलाते
गगन में तारे मौन गीत गाते
धरती पर बसी है चम्पा की सुगंध
तुम्हारा पावन प्रतीक बन
प्रिय दिव्य अनन्त।
कनाडा
में शीत ऋतु
नग्न वृक्षों पर खिल उठे हैं
हिम पुष्प
उनींदी घास ने ओढ़ ली है झीनी श्वेत चादर
मौन छा गया है वन के हर कोने में
आकाश की नीली आखों के स्पर्श पाकर
शान्ति और नृत्य का हो गया है संगम
शीत का होने लगा है आगमन।
शाखाओं के हृदय में सो गई कोपलें
धरा के आँचल में खो गईं कलियाँ
पक्षी उड़ गये हैं सुदूर दक्षिण में
सूनी हो चली हैं चहकती गलियाँ
ध्यान के पूर्ण हो चुके हैं प्रबंध
शीत का होने लगा है आगमन।
जंगल में बहती धारा भी अलसायी है
बहते बहते विश्रान्ति याद आई है
समाधि में अचल हो चले हैं किनारे
तृषित तरंगे सागर को पुकारें
एक ही फाइल मन में भर गई है मुक्ति की उमंग
शीत का होने लगा है आगमन।
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