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दिनेश चंद्र माहेश्वरी

  स्वाभिमान और अभिमान

कहते हैं 'स्वाभिमान' और 'अभिमान' में बड़ा अंतर होता हैं
और यह कि यह अंतर बड़ा ही अंतर्मयी होता हैं
जहां 'स्वाभिमान' स्वयं में जीवन रूपी ज्योत का प्रकाश फैलाता हैं
वहीं 'अभिमान' जीवन को 'अहं' के अंधकार में लुप्त करता हैं
पर ठहरिये और जरा सोचिये
पता नहीं 'कब' और 'क्यों'
'स्वाभिमान' का अति अभिमान
इन्सान में ऐसा परिवर्तन लाता हैं
उस उबलते हुये स्वाभिमान की ज्वाला में
'स्वाभिमानी' अपने ही अभिमान में जल कर रह जाता हैं
और फिर इस तरह . . . 
'स्वाभिमान' और 'अभिमान' के बीच 
लुप्त होती हुयी इस क्षीण रेखा से
हमने कितने ही इन्सानों को 'राम' से 
'रावण' में बदलते हुये देखा हैं।
और इसी बढ़ती हुयी क्रूर अभिमानी प्रवृत्ति से हमने
इन्सान छोड़ विशाल देशों को भी 
जलते और झुलसते हुये पाया हैं
समय की पुकार हैं कि हम सब मिलकर समझें और सोचें
आत्मचिंतन करें अपने ही मन में झाँकें और खोजें
क्या हम अपने ही 'स्वाभिमान' के 'अभिमान' में 
इतने तो नहीं खो गये हैं
कहीं ऐसा तो नहीं कि 
हम अपने ही प्रकांड प्रकाश से चुँधिया गये हैं
क्योंकि डर हैं तो इस सत्य का...
जहाँ चोट खाया 'अभिमान' आतंक का सहारा लेता हैं
वहीं स्वाभिमानी का अभिमान
आतंक को जनम देता हैं

स्नेह प्रेम और आदर

मैंने जीवन से जाना हैं
'स्नेह' 'प्रेम' और 'आदर' ही जीवन के वो सूत्र हैं
जो हमें हमसे और दूसरों से बांधे रखते हैं
चाहे ये कितने 'उलझें'
भले कभी ना 'सुलझे'
यही तो तीन 'धारायें' हैं 
जिनमें शुद्ध रक्त बहता हैं
यही वो 'त्रिखंभा' हैं 
जिन पर जीवन सँभला रहता हैं।
चाहे कोई भी हमसे छूटे
भले विवाद पर हम उनसे टूटें
इस त्रिकोण कवच में 
इतनी शक्ति प्रबल शक्ति होती हैं
'ग्रहण' रूपी दिव्य से 
ये हमें सदैव सुरक्षित रखती हैं।
और अंतिम सत्य जो मैंने पहचाना हैं
'रोष प्रदर्शन' 
'भय उत्तेजन' 
यह सब क्षणिक वैभवता देते हैं
पर 'स्नेह' 'प्रेम' और 'आदर' ही 
सच्चा और सम्पूर्ण सुख देते हैं

२३ दिसंबर २००२

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