हाइकु
तपन देख
आँधी ने खोल दिये
वर्षा के द्वार।
माँ दिला दो न
मुझे एक मुखौटा
जीना सीख लूँ।
बुझा न सकी
बढ़े दामों की प्यास
वर्षा ऋतु भी।
बिजुरी नहीं
छुरी लपलपाती
अन्धी राहों में।
नभ-सर में
करते जल क्रीड़ा
मेघ-मतंग।
रच अल्पना
चली बक-पंक्तियाँ
नीलाम्बर में।
पथराव से
होता घायल सत्य
विपक्षी नहीं।
6 अक्तूबर 2008
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