डॉ० जीवन प्रकाश
जोशी
के हाइकु
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बुझा सूरज
क्षितिज की आड़ में
हँसी रजनी।
कुहासे में से
निकलती किरण
जैसे जयश्री।
मैंने उगाया
वे उगे, फले नहीं
काँटों-से चुभे।
सर्पिल राह
आकाशगंगा हुई
जितनी चली।
तूफान उठा
उखड़े ऊँचे पेड़
जमी है घास।
फुनगी पर
फुदकी बैठी, मानो
मेरी उमंग।
आ पतझर
आ, गिरा पीले पात
ला हरापन।
२२ सितंबर २००८
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