हाइकु
नीम की छाँह
धूप के संग चली
पकडे बाँह।
नेह उलीचे
सागर से अंबर
धरती सींचे।
गंगा निर्मल
बहती अविरल
पीती गरल।
ढूँढ़ती छाँव
चिलचिलाती धूप
शीतल छाँव।
रवि का स्पर्श
रात कुनमुनायी
भरी अलस।
रश्मि ललाम
सूरज का प्रणाम
धरा के नाम।
नदी कुँवारी
डूब मरी बेचारी
पाँव थे भारी।
16 जनवरी 2007
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