डॉ. भगवतशरण अग्रवाल
जन्म- २३ फरवरी
१९३०‚ फतेहगंज पूर्वी‚ जिला बरेली‚ उत्तरप्रदेश।
शिक्षा- बी.ए.‚ पी–एच.डी. लखनऊ विश्वविद्यालय।
कार्यक्षेत्र-
पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं
प्र्रोफेसर–इन–चार्ज‚ गुजरात विश्वविद्यालय हिन्दी अनुस्नातक
केन्द्र‚ एल.डी. आर्टस कॉलेज‚ अहमदाबाद।
विजिटिंग प्रोफेसर एवं पी–एच।डी। निर्देशक‚ गुजरात
विश्वविद्यालय।
सम्मानोपाधि-
साहित्य महामहोपाध्याय–हिन्दी साहित्य सम्मेलन‚
इलाहबाद।
अपने कार्य के लिए अनेक संस्थाओं द्वार पुरस्कृत व सम्मानित।
प्रकाशित कृतियाँ-
हाइकु संग्रह, काव्य संग्रह, गीत संग्रह, कहानी संग्रह, हास्य
व्यंग्य शोध समीक्षा और कुछ संपादित ग्रंथ प्रकाशित
संपादक– हाइकु–भारती
ई मेल- bhagwatsaranagarwala@indiatimes.com
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हाइकु
मर जाऊँगा
यकीन नहीं होता
फिर क्या होगा?
सत्य ने छला
झूठ ने छला होता
दुख न होता।
कहानी मेरी
लिखी किसी और ने
जीनी मुझे है।
नेता वो शब्द
अर्थहीन व्यर्थ
अर्थ अनेक।
जब भी मिले
कहना कुछ चाहा
कहा और ही।
बोए सपने
सींचे इन्द्रधनुष
फले कैक्टस।
बूँद में समा
सागर और सूर्य
हवा ले उड़ी।
उनके बिना
दीवारें हैं‚ छत है
घर कहाँ है?
मैं था ही कहाँ?
जन्म भर व्यर्थ ही
ढूँढ़ता रहा।
हाथों झुलाया
भूखे रह खिलाया
बुढ़ाये स्वप्न।
१६ जून २००५ |