रूद्रापल गुप्त
सरस
के पाँच घनाक्षरी छंद
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राजनीति और देश
आम अनरीति हुई ऐसी राजनीति हुई,
बढ़ी गहरायी कैसे पाये कोई थाह को।
स्वार्थ सिद्धि एकमात्र जिसका इरादा बना,
कष्ट किसी और के पे डाले क्यों निगाह को।
वोट हेतु नित्य नई गोट चलते हैं नेता,
कौन शब्द दूँ मैं इस कुरसी की चाह को।
कृषि में प्रधान देश कैसा ये महान देश,
चुनते किसान जहाँ फाँसी वाली राह को।।
गिरता गरीब जाता गुम होती जाती धाक,
करता गुनाह वही पाता है पनाह को।
अपनी सुरक्षा सारी अपनी व्यवस्था सारी,
अपनी लगन आज हर नेता शाह को।
ऐसी राजनीति को धिक्कार बार-बार जो कि,
सुन नहीं पाती किसी भूखे की कराह को।
कृषि में प्रधान देश कैसा ये महान देश,
चुनते किसान जहाँ फाँसी वाली राह को।।
गाड़ी और बंगले तमाम नेता जी के लिए,
कौन शान्त करे मन-कामना अथाह को।
मजदूर भूखा और मजबूर खास यहाँ,
गति कैसे मिल पाये प्रगति-प्रवाह को।
बीज खाद पानी को ये भागते है यहाँ-वहाँ,
ताकते आषाढ़ और सावन के माह को।
कृषि में प्रधान देश कैसा ये महान देश,
चुनते किसान जहाँ फाँसी वाली राह को।।
देश कहीं जाय पर नेता भरे आह नहीं,
देख सकते हैं आप इनके उछाह को।
ढूँढते ये घूमते हैं निज वोट यहाँ-वहाँ,
मन्दिर को जाते कभी जाते दरगाह को।
खेती में गुजर नहीं काम है उधर नहीं,
गाँव के ये लोग करे कैसे निरवाह को।
कृषि में प्रधान देश कैसा ये महान देश,
चुनते किसान जहाँ फाँसी वाली राह को।।
ऐसा किया वैसा किया नेता कहें बार-बार,
इनके ही लोग बोल देते वाह-वाह को।
काम सब कर देंगे, दुख सारे हर लेंगे,
कह कर फेर लेते अपनी निगाह को।
पद बड़ा-मद बड़ा अनुभव कैसे करें,
हारे-थके कृषकों के हृदय की दाह को।
कृषि में प्रधान देश कैसा ये महान देश,
चुनते किसान जहाँ फाँसी वाली राह को।।
२७ जनवरी २०१४ |