अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

डॉ. प्रदीप शुक्ल

जन्म- २९ जून १९६७ को भौकापुर, लखनऊ में।
शिक्षा- चिकित्सक (बाल रोग विशेषज्ञ)

प्रकाशित कृतियाँ-
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गीत नवगीत, कुंडलिया तथा अवधी रचनाएँ प्रकाशित।

 

आशा का सूरज

आशा का सूरज उगा, लेकर नए विचार।
सपनों को पूरा करो, हो जाओ तैयार।
हो जाओ तैयार, कठिन हों चाहे राहें।
अंधाधुंध विकास, नहीं हम केवल चाहें।
हमें चाहिए शान्ति, नहीं हो जहाँ निराशा।
सुखी रहे यह देश, हमें बस इतनी आशा।

आधी आबादी मगर, फिर भी है तू मौन।
तू चाहे जग जीत ले, तुझको रोके कौन।
तुझको रोके कौन, भला किसमें ये दम है।
अपने को पहचान, हमेशा तू सक्षम है।
खुलकर अब तू बोल, रही जो मन में साधी।
पूरी हो हर माँग, लड़े जब दुनिया आधी।

आओ कुछ ऐसा करें, मानवता का काम।
उसका मौला खुश रहे, खुश हो मेरा राम।
खुश हो मेरा राम, चलो कुछ यों करते हैं।
बिना पूछकर नाम, किसी को खुश करते हैं।
सबको बाँटें प्यार, सभी को गले लगाओ।
करें न हम अपमान, मान दें सबको आओ।

सपना देखो, सच करो, कठिन न कोई काम।
जो सपने सच कर सकें, उनका होता नाम।
उनका होता नाम, हमेशा होता आया।
जो बैठा मन मार, वही हरदम पछताया।
यदि लो मन में ठान, हुआ हर मौक़ा अपना।
है तुममें वह बात, करोगे पूरा सपना।

हिन्दी में जो भी लिखे, रखिये उसका मान।
हिन्दी की अवहेलना, मत करिये श्रीमान।
मत करिये श्रीमान, नहीं तो पछताओगे।
खो दोगे पहचान, अगर तुम इठलाओगे।
हिंदी पर दो ध्यान, रहे माथे की बिंदी।
उसको दो सम्मान, लिखे जो प्यारी हिंदी।

१५ सितंबर २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter