सीताराम गुप्ता
जन्म- 1954 को दिल्ली के एक
गाँव में
हिंदी के अतिरिक्त भारतीय
भाषाओं, उर्दू तथा रूसी भाषा और उनके साहित्य में रुचि।
फारसी तथा अरबी का सामान्य अध्ययन।
समकालीन उर्दू तथा हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यिक
पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य तथा भाषा विषयक लेख, व्यंग्य,
कथा-साहित्य तथा कविताएँ नियमित रूप से प्रकाशित।
'नवभारत टाइम्स' में कल्पवृक्ष/आनंद योग के अंतर्गत
निरंतर नियमित लेखन।
आध्यात्मिक उपचार,
व्यक्तित्व-विकास तथा मनुष्य के संपूर्ण रूपांतरण पर मिस्टिक
इंडिया, लाइफ़ पॉज़िटिव, माइंड पॉज़िटिव, नेचर एंड वैल्थ,
अणुव्रत, पारख प्रकाश, सहज आनंद, योग-मंजरी, विश्व-ज्योति,
केंद्र भारती, निरामय जीवन, समग्र दृष्टि, कादंबिनी, अनौपचारिका,
आर्य जगत, वेदांत मंडलम आदि पत्रिकाओं में नियमित लेखन।
मन की शक्ति द्वारा उपचार विषयक
पुस्तक 'मन द्वारा उपचार' फुल सर्कल द्वारा प्रकाशित।
योग, विपश्यना, रेकी, क्रियायोग, योगनिद्रा, हिप्नोटिज़्म,
हिप्नोथिरेपी, साइकिक सर्जरी, आकेम मेडिटेशन तथा अन्य ध्यान
पद्धतियों का प्रशिक्षण तथा मन की उपचारक शक्ति पर निरंतर कार्य।
ध्यान विधियों का तुलनात्मक अध्ययन तथा इन्हीं पर आधारित उपचारक
ध्यान, तनाव प्रबंधन तथा मन की शक्ति द्वारा व्याधियों का उपचार
विषयक कार्यशालाओं का आयोजन।
ई-मेल-
srgupta54@yahoo.com
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काग़ज़ के
फूल
काग़ज़ के सब फूल हैं, वृंत-वृंत निस्पंद,
मसलो कितना ही इन्हें, देंगे नहीं सुगंध।
उलझी-पुलझी टहनियाँ, पात-पात पर धूल,
हम पर बरसे थे कभी, इसी पेड़ से फूल।
जंगल में कंक्रीट के, कैसे पनपे दूब,
फूल-फलेंगे कैक्टस, ख़ार चुभेंगे ख़ूब।
बढ़ा प्रदूषण हर तरफ़, शोर-शराबा, धूल,
ऐसे में क्योंकर खिलें, कोमल-कोमल फूल।
मन की दौलत जब लुटी, सूख गया संसार,
सींच न इसको फिर सका, दौलत का अंबार।
दौलत से दौलत बढ़ी, और बढ़ा व्यापार,
दौलत से ना मिल सका, प्रियतम तेरा प्यार।
फूलों में ख़ुशबू नहीं, नहीं तने पर खार,
फिर भी हमने बदन पर, पाए ज़ख़्म हज़ार।
ऐसा है इस शहर का, रंग-रंगीला रूप,
ना चंदा की चाँदनी, ना सूरज की धूप।
देख कमाई शहर की, खोया अपना गाँव,
छत-आँगन दुर्लभ हुए, दूर दरख़्त की छाँव।
कहाँ गई वो आदतें, कहाँ गए संस्कार
चेहरे पर मुस्कान है, अंदर हाहाकार।
9 अक्तूबर 2007
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