सीमा अग्रवाल
के दोहे | |
ज्ञान गठरिया
ज्ञान गठरिया सर धरो, जिम्मेदारी संग l
सुरभित हर जीवन करो, छिड़क प्रीत के रंगll
क्या बोलें उस ज्ञान को, जो अभिमान जगाय l
लघु भ्राता सम मित्र की, जग में हँसी उडायll
जिसमे जितना ज्ञान है, वो उतना गंभीर l
उच्छ्रंखल है मूर्ख है, ज्ञानी जो बेपीर ll
ज्योत ज्ञान की बाल कर, जग में करे प्रकाश l
नमन करूँ उस ज्ञान को, जो हरता तम पाश ll
बैठा धन के ढेर पर, क्यों इतराए 'जाग'l
जनम अकारथ ही रहे, बिना ज्ञान अनुराग ll २५
जून २०१२ |