सत्यवान वर्मा
'सौरभ'
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सुधरेंगे हालात (बीस दोहे)
तू भी पाएगा कभी फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोड़ना सुधरेंगे हालात।
बने विजेता वो सदा ऐसा मुझे यकीन।
आँखों आकाश हो पाँवो तले जमीन।।
जब तुमने यूँ प्यार से, देखा मेरे मीत।
थिरकन पाँवों में सजी, होंठों पे संगीत।।
तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद।
क्या तुमने भी किया, किसी वक्त हमें याद।।
लिख के खत से तुम कभी,भे जो साथी हाल।
खत पाए अब आपका, बीते काफी साल।।
हिन्दी हो हर बोल में, हिन्दी पे हो नाज।
हिन्दी में होने लगे, शासन के सब काज।।
हिन्दी भाषा है रही, जन-जन की आवाज।
फिर क्यों आँसू रो रही,राष्ट्रभाषा आज।।
मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार।
लिखी मात की पातियाँ, बाँचू बार हजार।।
बना दिखावा प्यार अब, लेती हवस उफान।
राधा के तन पे लगा, है मोहन का ध्यान।।
आपस में जब प्यार हो, फले खूब व्यवहार।
रिश्तों की दीवार में, पड़ती नहीं दरार।।
चिट्ठी लायी गाँव से, जब राखी उपहार।
आँखे बहकर नम हुई, देख बहन का प्यार।।
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात।
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घूसे-लात।।
नहीं रहे मुंडेर पे, तोते-कौवे-मोर।
डूब मशीनी शोर में, होती अब तो भोर।।
सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव।
पंछी उड़े प्रदेश को, बाँधे अपने पाँव।।
ख़त वो पहले प्यार का, देखूँ जितनी बार।
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलजार।।
बन के आँसू बह चले, जब हिरदय की पीर।
तनवा काशी-सा लगे, मनवा बने कबीर।।
अपना सब कुछ त्याग के, हरती नारी पीर।
फिर क्यों आँखों में भरा, आज उसी के नीर।।
कलयुग के इस दौर में, ये कैसा बदलाव।
सगे-संबंधी दे रहे, दिल को गहरे भाव।।
मात-पिता के वेश में, जानो तुम रे राम।
पाएगा तू क्या भला, जाकर काशी-धाम।।
आजादी के बाद भी, देश रहा कंगाल।
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल।।
१ अगस्त २०११ |