संदीप सृजन
1
जन्म- ५ जुलाई १९८० को उज्जैन
में
कार्यक्षेत्र-
संदीप सृजन १९९४ से पत्रकारिता और लेखन के श्रेत्र मे सक्रिय
है। सामाजिक पत्र पत्रिकाओं से आपके लेखन की शुरुआत हुई।
विभिन्न समाचार पत्रों मे संवाददाता के रूप मे लम्बे समय तक
अपनी सेवाएं आपने दी है, जैन समाज के पाक्षिक वर्धमान वाणी
समाचार पत्र के सह संपादक (१९९९-२०००) रहे, दैनिक अक्षर विश्व
के साहित्य संपादक (२००५-२००६) भी रहे, २००८ से शब्द प्रवाह
पत्रिका के संपादक है, जो कविता, लघुकथा और व्यंग्य को समर्पित
है ।
प्रकाशित कृतियाँ-
आपके लेख देश के प्रतिष्ठत समाचारपत्रों, पत्रिकाओं मे नियमित
रूप से प्रकाशित होते रहते है। नईदुनिया, पंजाब केसरी, नव
दुनिया, सरिता, सुमन सौरभ, मुक्ता, सरस सलिल,गृह शोभा,
बिंदियाँ, शुक्रवार ,उत्तर प्रदेश, हरिगंधा, गृह लक्ष्मी,
साधना पथ आदि कई उल्लेखनीय पत्र पत्रिकाओं मे आपकी कविताओं,
व्यंग्यों, कहानियों, आलेखों को ससम्मान स्थान दिया गया है।
दूरदर्शन, ई टी वी और आकाशवाणी से भी आपकी रचनाएँ प्रसारित हो
चुकी है। इश्तहार नाम से आपकी व्यंग्य क्षणिकाओ की एक पुस्तिका
तथा नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा आपकी एक पुस्तक गाँव की
बेटी का प्रकाशन किया गया है। यह पुस्तक भारत सरकार के
साक्षरता मिशन के अंतर्गत प्रकाशित हुई है। पत्रकारिता और
साहित्य सेवा के लिए कई सम्मानो से भी आपको सम्मानित किया जा
चुका है।
ईमेल- sandipsrijan999@gmail.com | |
घर आँगन की लाडली
घर आँगन की लाडली, खुशियाँ दे भरपूर।
बेटी के हाथों सभी, हों मंगल दस्तूर ।
बेटी ही बनती सदा, नव जीवन आधार ।
दो-दो घर के सपन को, करती है साकार।
आँगन की किलकारियाँ, पायल की झंकार ।
भूल सके ना हम कभी, बेटी का उपकार।
बेटी मे संवेदना, और बसा है भाव।
आँगन की तुलसी जिसे, पूजे सारा गाँव ।
बेटा है घर का शिखर, बेटी है बुनियाद ।
जीवन भर करती रहे, नैन मूँद संवाद ।
भाग्यहीन समझो उसे, या कमजोर नसीब।
आँगन मे बेटी नहीं, वो घर बडा गरीब।
हाथ जोड़ कर मानती, जीवन भर उपकार ।
उस बेटी को कीजिए, दिल से ज्यादा प्यार ।
खुशी-खुशी स्वीकार कर, दो-दो कुल की रीत।
आँसु और मुस्कान को, बेटी दे संगीत।
२९ जुलाई २०१३ |