नरेंद्र परिहार एकांत के दोहे | |
फूलों के बागान
जब रस्तों को छू गए बंदूकों के
गान
छाले छाले हो गए फूलों के बागान
निकली सागर खोजने वह चातक के पास
एक बूँद से बुझ गई सीपी की वह प्यास
पंछी उड़ गए आजकल दिखा न कोई ठौर
रह गए जंगल खोजते कोलाहल की भोर
मान रहा दिन रात को बदल गए उपमान
जितना उठता आदमी उतना नीचा मान
24 अक्तूबर 2007
|