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मनोहर शर्मा माया के दोहे

 

काँव काँव कौवे करें

काँव काँव कौवे करें, कोयल बैठी मौन
कौओं के इस शोर में, कुहुक सुने अब कौन

जोड़ घटाना देखकर, उठती मन में पीर
बाहुबली शासन करें सज्जन हैं बेचीर

ढूँढे से मिलता नहीं सच को कोई ठौर
गली गली पत्थर पड़े, झूठ कपट का दौर

निज स्वारथवश आज नर बने हुए शैतान
अभिनय चतुर सुजान कर, खोते निज पहचान

घासलेट, माचिस नहीं, अब जलते तंदूर
बेटी तब तुम ब्याहना, हो दहेज भरपूर

कौन समझता आजकल, बूढ़े जन की पीर
पत्थर दिल सब हो गए रोते फिरें फ़कीर

बूढ़े लाठी टेककर करते हैं बाज़ार
घूम रहे बेटे बहू ले सरकारी कार

1 दिसंबर 2007

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