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 अमीर खुसरों 

 

 

 

 

खुसरो के दोहे

गोरी सोवै सेज पर मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस।।

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीउ को दोउ भए एक रंग।।

श्याम सेत गोरी लिये जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।

वो गए बालम वो गए नदियो किनार।
आपे पार उतर गए हम तो रहे मजधार।।

भाई रे मल्लाहो हमको पार उतार।
हाथ को देऊँगी मँुदरी गले को देऊँ हार।।

देख मैं अपने हाल को रोऊँ ज़ार–ओ–ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत हैं हम हैं औगुनहार।।

चकवा चकवी दो जने उनको मारे न कोय।
ओह मारे करतार कै रैनविछौही होय।।

सेज सूनी देख के रोऊँ दिन–रैन।
पिया–पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन।।

ताजी खूटा देस में कसबे पड़ी पुकार।
दरवाजे देते रह गए निकस गए उसा पार।।

खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी वाकी धार।
जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार।।

खुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पिया के संग।।

 १ सितंबर २००१  

 

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