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अखिलेश सोनी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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  सर्दी के दोहे

निकल आये संदूक से, स्वेटर, मफलर, टोप
सर्दी जिद पर अड़ गयी, रोक सके तो रोक

सुबह सुनहरी धूप में, अदरक की हो चाय
भजिये मेथी-साग के, शाम ढले हो जाय

सर्द हवाएँ चल रहीं, बिस्तर बड़ा सुहाय
ऑफिस ना जाना पड़े, ऐसा कुछ हो जाय

ठंड कंपाये हड्डियाँ, बदन अकड़ सा जाय
रगड़ हथेली जोर से, कुछ गरमी आ जाय

अलसाया सूरज उगा, सुस्त सुस्त सा आज।
बादल उसको छेड़ते, छोड़ छाड़कर काज

काँप गया इक बारगी, मौसम भी प्रतिकूल
छोटे बच्चे चल पड़े, ठिठुरन में स्कूल

घर में दुबके हैं सभी, सूनी है चौपाल
तन गरीब के भी ढंकें, दया करो गोपाल

मेथी के लड्डू बने, तिल के बने गणेश
गुड़पट्टी ऐसी लुटी, बचे नहीं अवशेष

कोहरा बदमाशी करे, लिए धुंध को साथ
दिनभर सबके बीच में, हाथ न सूझे हाथ

१५ फरवरी २०१७

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