आनंद कृष्ण
जन्म- ७ सितंबर
१९६६।
शिक्षा :-
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग; भारतीय इतिहास; हिंदी, इंग्लिश और
उर्दू साहित्य, फ्रेंच भाषा, सुगम संगीत।
सम्प्रति :-
जन संपर्क अधिकारी, भारत संचार निगम लिमिटेड, जबलपुर।
सृजन की विधाएं :-
कविता, कहानी, अनुवाद।
मूल विधा :-
समीक्षा।
ई मेल-
anandkrishan@yahoo.com
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दिन भर बोई धूप
निकल पड़ा था भोर से पूरब का मज़दूर
दिन भर बोई धूप को लौटा थक कर चूर।
पिघले सोने सी कहीं बिखरी पीली धूप
कहीं पेड़ की छाँव में इठलाता है रूप।
तपती धरती जल रही, उर वियोग की आग
मेघा प्रियतम के बिना, व्यर्थ हुए सब राग।
झरते पत्ते कर रहे, आपस में यों बात-
जीवन का यह रूप भी, लिखा हमारे माथ।
क्षीणकाय निर्बल नदी, पडी रेट की सेज
"आँचल में जल नहीं-" इस, पीडा से लबरेज़।
दोपहरी बोझिल हुई, शाम हुई निष्प्राण.
नयन उनींदे बुन रहे, सपनों भरे वितान।
उजली-उजली रात के, अगणित तारों संग.
मंद पवन की क्रोड़ में, उपजे प्रणय-प्रसंग।
८ जून २००९ |