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रूपहंस हबीब

जन्म : १० जून १९४९ को शिमला के निकट बिलासपुर हिमाचल प्रदेश भारत में
कार्यक्षेत्र : वे चिकित्सा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। हिंदी और उर्दू की कविता और संगीत में विशेष रुचि है। द्यो अपने गीत स्वयं बनाते और गाते हैं।

प्रकाशित रचनाएँ : गीतों की सीडी ‘सोज़ ए हबीब’, इसी नाम से उर्दू में संकलन प्रकाशित। हिंदी में हबीब की शायरी प्रकाशनाधीन। अनेक विख्यात रचनाकारों के साथ मुशायरे में संगत।

ई कविता से नया नया लगाव। वे कहते हैं कि यह नयी रोशनी का नया चिराग है।





 

 

तक़ाज़ा

अपनी आहों का तकाज़ा न किया हमने
दूर की सोच कर कुछ भी न कहा हमने।

हम तो आए न थे बसाने को सोने शहर
ज़िंदगी भर में सहरा भी न पाया हमने।

तुम तो गुज़रे थे पहलू से खुशबू की तरह
तेरे ख़ातिर ही मुड़ कर भी न देखा हमने।

दिल तो बारेगरां डूबा रहा ग़म में हबीब
तेरे दामन को आशंकों से न भिगोया हमने

लब पे आकर इकबात रह जाती है सनम
आएगी याद हर इकबात न सोचा तुमने।

 

मौसम

मौसम सर्द सा है रंगे फिज़ां बेज़र्द सा है।
कहती है शामे तन्हाइयां दिल में क्यों दर्द सा है

जिसने सताया है वो अपना ही था हबीब
जाना था उसको दूर तो आया ही था क्यों करीब
इन्सां–इन्सां होकर भी क्यों खुदगर्ज़ सा है

जितने मिले अपने अपनों के सताए मिले
जिनको समझा अपना अपनों में पराए मिले
जीवन का ये सपना अपना क्यों अफ़सुर्द–सा है।

गंगा के किनारे में न पर्वत के सहारों में
मुझको न पाओगे अबके तुम बहारों में
दिलों पर छाया रहूंगा मैं छाया ज्यों अर्श सा है।

९ अप्रैल २००६

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