सुधीर
विद्यार्थी की
छोटी कविताएँ
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नदी
१
नदी में उतरना चाहता हूँ
पर भीगना नहीं चाहता
संभव नहीं है बिना भीगे
उतर पाना किसी नदी में
भीगने से बचकर
नदी को जानना चाहती है
नई सदी।
२
नदी बहती है
इसलिए खत्म नहीं होती
खत्म होने के लिए
नहीं बहती है नदी
बिना बहे खत्म होना
नदी का अपने विरुद्ध होना है।
३
नदी आमंत्रण देती है
अपने साथ बहने का
नदी से मिलना
पानी की तरह
गतिवान और तरल हो जाना है।
४
नदी टकरा रही है
चट्टानों से
पत्थरों के सीने पर
लिख रही है वह
बिना थके अपनी जीवन-यात्रा
दुर्गम स्थानों में
नदी का न रुकना
उसका आत्मकथ्य है।
५
नदी में दिखाई पड़ रहा है
हमारा चेहरा
नदी का बयान
हमारे समय पर
क्रूर टिप्पणी है।
६
नदी सिर झुकाए खड़ी है
चीख रही है नदी
रुदन कर रही है
क्या कोई सुन रहा है
नदी का उदास हो जाना।
७
नदी की तरह
जीना चाहती है नदी
वह आदमी से डरकर
लौट जाना चाहती है
अपने आदिम समय में।
२० जुलाई २०१५ |