प्रियंका जैन
शिक्षा-
परास्नातक - भौतिक शास्त्र, कंप्यूटर विज्ञान
कार्यक्षेत्र-
प्रमुख तकनीकी अधिकारी, अनुसंधान और विकास केंद्र, कृत्रिम
बुद्धिमत्ता समूह, सी - डैक, पुणे।
ई मेल :
rashi100@gmail.com
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कुछ छोटी
कविताएँ
आस
ओस की बूँद को, देखा है मिटाते,
क्षण मात्र में अपना अस्तित्व
पानी के बुलबुले को अपना सर्वस्व ।
तुम किस श्वास की, लगाए बैठी हो आस,
ऐ मेरी जिन्दगानी,
क्या तुम्हे है स्वयं पर भी,
दो पल का विश्वास
लाल
वाह ... अभूतपूर्व सुंदर!
मेरे कुल की शान!
मेरे लाल!!
कहा बूढे गुलाब ने,
देख नवान्तुक गुलाब को।
खा गये ना धोखा, बेवकूफ,
मैं लाल हूँ, पर तेरा नही,
मैं तो एक कागज का फूल हूँ
शोषित गुलाबों का बना
इत्र लगा कर आया हूँ
उसका उत्तर था।
अहसास
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे कपड़ो को समेटते हुए
अनायास ही रुक कर
उनमे से तुम्हे ढूढ़ने की कोशिश का
वो पुराना अहसास
आज फिर
अलमारी में से साड़ी के हैंगर से उतर कर
मेरे बदन से लिपट गया
संबंध
कैसा सजीव संबंध है ना,
शब्दों और अर्थों का
कुछ शब्द जुडते हैं
एक विशेष क्रम में
अक्स देते हैं विचारों को
अर्थ में ढल कर,
और मासूम अर्थ
शब्दों का लबादा ओढ़
सोचते हैं
उन्हे घर मिल गया
पता ही नहीं
चला
दरख्तों के पायों से
सरकते हुए ये वक़्त के साए
कब झील के उस पार तैर गए
साथ ले गए
शाम का वो गुलाबी रंग,
लान का झूला और चाय की चुस्कियाँ
छूट गए
बालों में बुने हुए, सुनहरे धागे
पता ही नहीं चला
मैंने अभी जहाज़
छोड़ा नहीं है
किनारों को खबर है,
कप्तान की काबिलियत की
नियति निर्भर नहीं होती
डूबते बड़े की
झंझावत के समीकारणों पर,
ओस की बूँद
और एक ज़रा सी नोक
दो पल का ठहराव
चमकने की लालसा
विलीन होने के पहले
गरजते तूफ़ान, लरझते मंझधार
और इंतज़ार करते साहिल से कह दो -
मैंने अभी जहाज़ छोड़ा नहीं है
३ सितंबर २०१२ |