जन्म- २२ जुलाई १९७३ को कांगड़ा
जिले के पालमपुर नगर में।
शिक्षा-
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से एमबीए मार्केटिंग।
कार्यक्षेत्र-
पौने दो साल एक खाद्य उत्पाद बनाने वाली कंपनी में सेल्स
एडमिनिस्ट्रेशन मैनेजर रहा लेकिन जल्द ही पत्रकारिता में आ
गया। हिन्दी की रोटी बहुत रास आ रही है। ग़ज़लें भी लिखता हूँ
और गद्य भी जो अधिकतर अखबार के काम आता है। कालेज स्तर पर
मोनोएक्टिंग, भाषण प्रतियोगिता, काव्य पाठ, ग़ज़लगायन में
पुरस्कार मिले हैं।
प्रकाशित कृतियाँ-
संपादित- सागर पालमपुरी, व्यक्तित्व एवं कृतित्व (डा. सुशील
कुमार फुल्ल के साथ) ।
संकलित- शब्द के संस्कार, हिमाचल मित्र, मेघ सारंग, विपाशा,
दैनिक जागरण, दिव्य हिमाचल, इरावती और पर्वत राग आदि पत्रिकाओं
में आलेख, ग़ज़लें एवं कविताएँ प्रकाशित।
कुछ प्रार्थनाएँ
एक
दुत्कारता है दिन
उल्टा सीधा बायोस्कोप
दिखाती है रात
बिंधते हैं
कीलों पर लेटे
लाइलाज लम्हे
हे ईश्वर
दो घड़ी नींद मिलेगी?
दो
प्रभु जी
दीजिए वरदान
मैं इस दौर में भी लिख सकूँ
प्रेम कविता ही
चाहूँ अगर लिखना
प्रेम कविता
तीन
हे ईश्वर
न सपने चाहिए
न उत्तेजना
अंतर नहीं
क्या है साफ
क्या है मटमैला
क्या मीठा क्या कसैला
कुछ देर सोना चाहता हूँ
कुछ थकी कविताओं को
ढोना चाहता हूँ
वे चल सकती है
वरना ढल सकती हैं
चार
प्रभु जी
हर पल
हर रोज
खुद से उलझना
खुद पर अटकना
बाहर से भाग
भीतर भटकना
सब माफ हो जाए
ऐसा न हो,
सफाई देने वाला साफ हो जाए
इस पर भी ध्यान देना
कभी आदमी के
हक में भी बयान देना
पाँच
अधूरी हैं कुछ डायरियाँ
कहने हैं कुछ झूठ
घर की दीवारों पर
अधूरे हैं चाक से लिखे
कुछ मासूम शब्द
संत्रस्त है कुछ पल
पिछली बार खुशखत नहीं लिखी गई
स्कूल में तख्ती
नहीं कहा गया स्कूली छात्रों से
बहुत कुछ
कुओं को जरूरत है साफ पानी की
बावडि़यों तक
पहुँचाने हैं
बहिष्कृत देवता
दादा जी के लिए
तोड़नी है ब्रह्मी बूटी
प्रभु जी
मोक्ष तो जीवन ही है
क्या एक जीवन और मिलेगा?