डा. अरुण
प्रकाश अवस्थी
जन्म : १७ दिसंबर १९४७
को उन्नाव जनपद में मौरावां कस्बे में उन्नाव से
४४ कि. मी.
शिक्षा: हिंदी, अंग्रेज़ी भूगोल, पत्रकारिता में परास्नातक,
अंग्रेज़ी में शोध उपाधि।
कार्यक्षेत्र : ग्यारह वर्ष सेन्ट्रल बैंक आफ़ीसर्स ट्रेनिंग
कालेज के प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया तथा कलकत्ता के
हिंदी दैनिक विश्वमित्र में अठारह वर्ष संपादक रहे।
प्रकाशित रचनाएँ :
कविता संग्रह 'रावीतट', 'क्रांति का देवता', 'महाराणा का
पत्र', 'असुवन जल सींचि–सींचि', 'राम–श्याम शतक' तथा उपन्यास
'सिंधु शार्दूल दाहिरसेन' व 'सबसे ऊपर कौन' सहित कुल अठारह
पुस्तकें प्रकाशित।
संप्रतिः 'सुभाष डिग्री कालेज, मौरावां' की प्रबंध समिति के
अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश के तीसरे सबसे बड़े पुस्तकालय
'हिंदी साहित्य पुस्तकालय, मौरांवां' के महा सचिव।
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राम और रावण
इस बार रामलीला में
राम को देखकर–
विशाल पुतले का रावण थोड़ा डोला,
फिर गरजकर राम से बोला–
ठहरो!
बड़ी वीरता दिखाते हो,
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो!
शर्म नहीं आती,
कागज़ के पुतले पर तीर चलाते हो।
मैं पूछता हूं
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
प्रभो,
आप जानते हैं
कि मैंने अपना रूप कभी नहीं छिपाया है
जैसा भीतर से था
वैसा ही तुमने बाहर से पाया है।
आज तुम्हारे देश के ब्रम्हचारी,
बंदूके बनाते–बनाते हो गए हैं दुराचारी।
तुम्हारे देश के सदाचारी,
आज हो रहे हैं व्याभिचारी।
यही है तुम्हारा देश!
जिसकी रक्षा के लिए
तुम हर साल
कमान ताने चले आते हो?
आज तुम्हारे देश में विभीषणों की कृपा से
जूतों दाल बट रही है।
और सूपनखा की जगह
सीता की नाक कट रही है।
प्रभो,
आप जानते हैं कि मेरा एक भाई कुंभकरण था,
जो छह महीने में एक बार जागता था।
पर तुम्हारे देश के ये नेता रूपी कुंभकरण पांच बरस में एक
बार जागते हैं।
तुम्हारे देश का सुग्रीव बन गया है तनखैया,
और जो भी केवट हैं वो डुबो रहे हैं देश की बीच धार में नैया।
प्रभोॐ
अब तुम्हारे देश में कैकेयी के कारण
दशरथ को नहीं मरना पड़ता है,
बल्कि कम दहेज़ लाने के कारण
कौशल्याओं को आत्मदाह करना पड़ता है।
अगर मारना है तो इन ज़िंदा रावणों को मारो
इन नकली हनुमानों के
मुखौटों के मुखौटों को उतारो।
नाहक मेरे कागज़ी पुतले पर तीर चलाते हो
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो।
मैं पूछता हूं
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
१६ अक्तूबर २००५
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