अरुण
कुमार मयंक
|
|
पाँच छोटी कविताएँ
१- सुप्रभात!
सूर्य की नव किरणों के साथ,
नई आशा, नई उमंगें,
नई स्फूर्ति, नई ताज़गी,
नव छंद, नव लय,
नव राग, नव विहाग,
नव विहान, नव उड़ान,
लेकर आया है,
आज का नया दिन...!
२- नारी
नारी !
तू कितनी है न्यारी,
तू कितनी है प्यारी,
कभी बनती है बेचारी,
कभी बनती है चिंगारी...!
३- अर्थ
आज
अर्थ ही जीवन है,
जीवन ही अर्थ है,
अर्थ के बिना,
सब-कुछ व्यर्थ है,
अर्थ का यह,
कैसा अनर्थ है!
४- आँसू
नयनों के आँसू गिरने से
ना कुछ बनता है,
ना कुछ बिगड़ता है
किन्तु सीता द्रौपदी के आँसू
यों ही व्यर्थ नहीं जाते!
वाल्मीकी और व्यास,
मसि-पात्र में भर लेते हैं
फिर डुबो उसी में
अपनी कलम से
रामायण-महाभारत लिख देते हैं
५- शून्य
कभी-कभी शून्य घेर लेता है
हो जाते हैं लुप्त
उमड़ते-घुमड़ते बादल
भाग जाते हैं स्वर्ग में
बरसते ही नहीं
अकाल पड़ जाता है
पन्ना सादा रह जाता है
कुछ पल गुजरते हैं
नए इन्द्रधनुष उगते हैं
बादलों को फिर आमंत्रतित करते हैं अक्षर और शब्द
फिर बरसने लगते हैं.
२० अगस्त २०१२ |