तुलसीदास
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तुलसी (१५३२-१६२३) ने हिन्दी
भाषी जनता को सर्वाधिक प्रभावित किया। आपका ग्रंथ "रामचरित मानस"
धर्मग्रंथ के रूप में मान्य हो चुका है। उनका साहित्य समाज के
लिए आलोक स्तंभ का काम करता रहा है। उनकी कविता में साहित्य और
आदर्श का सुन्दर समन्वय हुआ है।
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तुलसी दास
के दोहे
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत
चहुँ ओर।
बसीकरन एक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
बिना तेज के पुरुष की अवशि
अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।।
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या
विनय विवेक
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं
मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं
सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
राम नाम मनि दीप धरू जीह
देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरौ जौ चाहसि उजियार।। |