सतपाल ख्याल
पेशे से इंजीनियर,
हिमांचल बद्दी में कार्यरत सतपाल
ख्याल ग़ज़ल लिखने के शौकीन हैं। साथ ही आज के
ग़ज़लकार और ग़ज़ल नाम से गृज़लों को एक चिट्ठा भी प्रकाशित
करते हैं।संपर्क-
satpalg.bhatia@gmail.com
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दो ग़ज़लें
एक
इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ
मैं
खुद का कितना हूँ सोचता हूँ मैं
ये हुनर आते आते आया है
अब तो ग़ज़लों में ढल रहा हूँ मैं
हो असर या न हो किसे परवाह
काम सजदा मेरा दुआ हूँ मैं.
कैसे बाजार में गुजर होगी
बस यही सोचकर बिका हूँ मैं
दो
लो चुप्पी साध ली माहौल ने सहमे
शजर बावा
किसी तूफ़ान की इन बस्तियों पर है नज़र बावा
है अब तो मौसमों में ज़हर खुलकर सांस कैसे लें
हवा है आजकल कैसी तुझे कुछ है खबर बावा
ये माथा घिस रहे हो जिस की चौखट पर बराबर तुम
उठा के सर जरा देखो है उस पर कुछ असर बावा
न है वो नीम, न बरगद, न है गोरी सी वो लड़्की
जिसे छोड़ा था कल मैंने यही है वो नगर बावा
न कोई मील पत्थर है जो दूरी का पता दे दे
ये कैसी है डगर बावा ये कैसा है सफ़र बावा
२६ मई २००८ |