सलीम अहमद
"ज़ख्मी" बालोदवी
मौलाना
खुदाबख्श "शैदा" के बेटे "जख्मी" जी का जन्म १९१८ में नागपुर
में हुआ था। शायरी का शौक उन्हें पिता और दादा से विरासत में
मिला और नागपुर छोड़ कर दुर्ग ज़िले के बालोद नामक स्थान को
उन्होंने अपना कार्यस्थल बनाया। उनके उस्ताद सैय्यद अबुल हसन
'नातिक' गुलौठवी थे जो दाग के शागिर्द और देश के प्रसिद्ध शायर
थे। सहज और सम्प्रेषणीय शेरों के कारण आपको ज़ुबान का शायर कहा
जाता है। वे उर्दू के शायर थे पर अरबी फारसी के जटिल शब्दों से
उन्होंने अपने को बचा रखा है। उनके काव्य में भारत की सच्ची
आत्मा के दर्शन होते हैं।
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सुख का गोरी
सुख का गोरी नाम न लेना दुख ही दुख है गाँवों
में।
प्रीत का कांटा मन में चुभेगा, खेत का काँटा
पाँवों में।।
देख मुसाफिर मित्र खड़े हैं, छतरी ताने गाँवों
में।
पीपल बरगद नीम बुलायें, हाथ हिला कर छाँवों
में।।
माटी के हम दीप ज़रा से, ज्योत हमारी कितनी देर।
घात में बाहर घोर अंधेरे, घुस आए कुटियाओं में।
सांस खटकती फांस के जैसी, पल भर मन को चैन नहीं।
नीरस नीरस जीवन सारा, आग लगे आशाओं में।।
कृष्ण की पूजा श्याम की भक्ति मुरलीधर की मतवाली।
राधा जैसे भाग हैं किसके, बिन ब्याही कन्याओं में।।
इस युग के बेढब लोगों से क्या ढब की बात कहे कोई।
चतुराई से चिन्ता में फंसे हैं, बुद्धि से बाधाओं में।।
तन का तिनका जीवन तट पर, कब तक जख्मी ठहरेगा।
लहर लहर में छीना झपटी, होड़ लगी घटनाओं में।।
१५ अक्तूबर २००० |