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हम तो
मिट्टी थे |
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हम तो मिट्टी थे
कुम्हार ने जैसा रूप दिया
बिना हिचकिचाहट के हमने
उसको खूब जिया।
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बीच कुएँ में लटके तैरे डूबे उतराए
फाँसी सहकर भी गहरे से पानी भर लाए
सबकी प्यास बुझे
इसके हित
क्या कुछ नहीं किया।
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चाहा जिसको सुख के दिन जैसी वह छूट गई
मूरत मिट्टी की थी कच्ची थी फिर टूट गई
इन उनकी साधें
भरते भरते
तन हवन किया।
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तुम-क्या-हो-तुम-क्या-जानो-हम-खुद-ना-जान-सके
इस असार संसार सार को ना पहचान सके
मिट्टी के रूपों
में खोए
मिट्टी जनम किया।
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- डॉ. वीरेन्द्र निर्झर |
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इस माह
(माटी
विशेषांक में)
गीतों में-
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अवनीश सिंह चौहान |
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अज्ञात |
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उमा
प्रसाद लोधी |
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ऋताशेखर मधु |
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गिरीश पंकज |
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पद्मा मिश्रा |
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मधु
शुक्ला |
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मधु
संधु |
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मुकेश बोहरा अमन |
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यमुना पाठक |
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रमेश रंजक |
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विश्वंभर शुक्ल |
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वीरेन्द्र निर्झर |
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शशि पाधा |
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शिवमंगल सिंह सुमन |
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शुभम श्रीवास्तव ओम |
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सुरेन्द्र कुमार शर्मा |
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सुरेन्द्रपाल वैद्य |
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हरिहर झा |
छंदमुक्त
में-
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अनुपमा त्रिपाठी सुकृति |
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निर्मला जोशी
'निर्मल' |
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मधु प्रधान |
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मीरा ठाकुर |
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संजय सुजय बासल |
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सुरेखा अग्रवाल |
छंदों में-
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कल्पना मनोरमा |
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मंजु गुप्ता |
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विजय तिवारी 'किसलय' |
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रेखा श्रीवास्तव |
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श्रीधर आचार्य शील |
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स्मृति गुप्ता |
अंजुमन में-
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परमजीत कौर रीत |
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रमा
प्रवीर वर्मा |
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रवि
खण्डेलवाल |
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