पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. २. २०२४  

अंजुमन उपहार काव्य संगम गीत गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलन अभिव्यक्ति
कुण्डलिया हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला रचनाकारों से

हल्की धूप

 

 

हाड़ कँपाती इस सर्दी में
क्यों है मेरा मद्धिम रूप
पूछ रही है हल्की धूप

बाजारों में रखे हुए हैं
स्वेटर, जाकिट, मफलर, कोट
खाली जेब , भरी सर्दी में
करती तन पर, मन पर चोट
चिढ़ा रहा है माह दिसम्बर
उस पर कोहरे का विद्रूप
पूछ रही है हल्की धूप

जाने कितनी हुईं बैठकें
सूरज अध्यक्षता तले
आश्वासन हर बार मिला, पर
वादे थोथे ही निकले
अब तक वही अवस्था मेरी
कितने बने-मिटे प्रारूप
पूछ रही है हल्की धूप

जब-जब रूप निखरना चाहा
रचा घटाओं ने षड़यंत्र
धूप-धूप में अंतर रखकर
अपने खेल खेलता तंत्र
क्यों मौसम हर बार बदलता,
अपनी सुविधा के अनुरूप
पूछ रही है हल्की धूप
1
- प्रवीण पारीक अंशु

इस माह

गीतों में-

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प्रवीण पारीक अंशु

अंजुमन में-a

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देवेश दीक्षित

छंदमुक्त में-

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शैलेन्द्र चौहान

दिशांतर में-

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नेपाल से मनीषा मारू

छोटे छंद में-

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आकुल के दोहे

पुनर्पाठ में-

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देवेन्द्र सफल
 

 

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विगत माह
संक्रांति विशेषांक में

गीत, गजल, छंदमुक्त तथा
अन्य छंदों में
अनुभूति के
विशिष्ट रचनाकारों द्वारा रचित
संक्रांति की धूप से गरमाती
ढेर-सी रचनाएँ

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन / गजल संपादक- भूपेन्द्र सिंह
     

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