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ज्योति नगर
कर दें |
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चलो तमस के गली गाँव को
ज्योति नगर कर दें
आँगन में नभ की दिवाली जगमगजग कर दें
ज्योति नगर कर दें
थकन हताशा के आँगन में नवल दीप धर दें
आशाओं के सपन सुनहले नित नूतन कर दें
घुप्प अन्धेरों की चौखट पर
नव उजास भर दें
खुशियों के अधरों मुस्कानों के नवगीत धरें
दीपक के अन्तस की पीड़ा बन मनमीत हरें
भावों के तट पर शब्दों के
नव निर्झर धर दें
चाँद सितारे वसुधा के आँचल पर हों ठहरे
गीत थिरकते हों अधरों पर अन्तस में हों लहरें
दीपक बाती के उत्सव को
नव मंगल स्वर दें
-सुरेन्द्र कुमार शर्मा |
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इस माह
दीपावली विशेषांक में
गीतों में-
अंजुमन में-
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छंदमुक्त में-
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दोहों
में-
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आर.सी.शर्मा आरसी |
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दिनेश
रस्तोगी |
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