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खिड़की बाँस की |
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खुल गई मन-अंजुमन में, एक
खिड़की बाँस की
झूमती आई गज़ल, कहने कहानी बाँस की
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किस तरह साँचे ढला यह, अनगिनत हाथों गुज़र
श्रम-नगर गाथा सुनाता, हस्त शिल्पी बाँस की
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वन से हरियाला चला फिर, खूब इसे छीला गया
इस तरह चौके बिछी, चिकनी चटाई बाँस की
1
सिर चढ़ा सोफा चिढ़ाता, जब उसे तो फ़ख्र से
हम किसी से कम नहीं, कहती है कुर्सी बाँस की
1
गाँव-शहरों से अलग, हर लोभ लालच से परे
दे रही आकार इन्हें, फ़नकार बस्ती बाँस की
1
रस-ऋचाओं से नवाज़ा, गीत-कविता ने इसे
शायरी ने भी बजाई, खूब बंसी बाँस की
1
करके हत्या, वन-निहत्थों की मगन हैं आरियाँ
हत हुई है साधना, तपते तपस्वी बाँस की
1
इस नियामत की हिफाज़त ‘कल्पना’ मिलकर करें
रह न जाए सिर्फ पन्नों, पर निशानी बाँस की
1
- कल्पना रामानी
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इस सप्ताह
अंजुमन में-
दोहों में-
हाइकु में-
पिछले सप्ताह
१८ मई २०१५ के
बाँस विशेषांक
में
गीतों में-
कुमार
रवीन्द्र,
आभा सक्सेना,
उमा
प्रसाद लोधी,
उर्मिला उर्मि,
ऋता
शेखर मधु,
कमलेश कुमार दीवान,
कल्पना रामानी,
कमलेश दीवान,
कुमार
गौरव अजीतेन्दु,
जगदीश
पंकज,
पंकज
परिमल,
डॉ.
प्रदीप शुक्ल,
भावना
तिवारी,
भोलानाथ,
डॉ. मधु
प्रधान,
रजनी
मोरवाल,
राजेन्द्र वर्मा,
रामशंकर
वर्मा,
वेद
शर्मा,
शशि पाधा,
शिवम
श्रीवास्तव ओम,
श्याम नारायण मिश्र,
संजीव
वर्मा सलिल छंदमुक्त में-
उर्मिला
शुक्ल,
अनिल कुमार मिश्र,
अनुज
लगुन,
अश्विन
गांधी,
मंजुल
भटनागर,
मंजु
गुप्ता,
श्रीकांत मिश्र कांत,
सरस्वती
माथुर,
परमेश्वर फुँकवाल,
प्रेम शंकर शुक्ल,
बच्चन पाठक सलिल,
राजेश्वर पाठक,
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,
सुरेन्द्रपाल वैद्य।
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अंजुमन
। उपहार
।
काव्य संगम । गीत ।
गौरव
ग्राम ।
गौरवग्रंथ
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निदेशन : अश्विन गांधी संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन :
पूर्णिमा वर्मन
सहयोग :
कल्पना रामानी
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