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१०. ११. २०१४-

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हाकिम आज निवाले देंगे

     

गाँव-नगर में हुई मुनादी
हाकिम आज निवाले देंगे

सूख गयी आशा की खेती
घर-आँगन अँधियारा बोती
छप्पर से भी फूस झर रहा
द्वार खड़ी कुतिया है रोती

जिन आँखों की ज्योति गई है
उनको आज दियाले देंगे

सर्द हवाएँ देह खँगालें
तपन सूर्य की माँस जारती
गुदड़ी में लिपटी रातें भी
इस मन को बस आह बाँटती

आस भरे पसरे हाथों को
मस्जिद और शिवाले देंगे

चूल्हे हैं अब राख झाड़ते
बासन भी सब चमक रहे हैं
हरियाई सी एक लता है
फूल कहीं पर महक रहे हैं

मासूमों को पता नहीं है
वादे और हवाले देंगे

- बृजेश नीरज

इस सप्ताह

गीतों में-

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बृजेश नीरज

अंजुमन में-

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चंद्रभान भारद्वाज

छंदमुक्त में-

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सतीश जायसवाल

क्षणिकाओं में-

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सौरभ पांडेय

पुनर्पाठ में-

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राजेन्द्र तिवारी

पिछले सप्ताह
 ३ नवंबर २०१४ के अंक में

गीतों में-
बृजनाथ श्रीवास्तव

अंजुमन में-
अशोक रावत

छंदमुक्त में-
नीरज कुमार नीर

कुंडलिया में-
रामशंकर वर्मा

पुनर्पाठ में-
रोली त्रिपाठी


 

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी