मुस्कानों की खुशबू बाँटो
हर दुखिया को
टेर के
बड़े सवेरे मुझसे बोले
पीले फूल
कनेर के
1
हमको देखो
हमें सहेजा
नहीं किसी ने प्यार से
भूख प्यास को बिखरा जूझे
जग के दुर्व्यवहार से
जिसने दर्द
दिया हम देते
खुशबू उसे दुलार से
खाली हाथ नहीं लौटाया
कभी किसी को द्वार से
1
हर आँसू के मीत बनो तुम
बिना किसी भी
देर के
1
जो मीठे
फल देता उसको
दुनिया पत्थर मारती
सच कहने वाले को जगती
जीभर कर दुत्कारती
नीवों में
गड़ने वालों की
कभी न होती आरती
अपने ही घर में अपमानित
होती देखी भारती
1
चलो निकालो काँटे चलकर
थके पथिक के
पैर के
1
- बटुक चतुर्वेदी |