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२३. १२. २०१३

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अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत

            

  अब नहीं होते
हृदय के तार झंकृत
सो गए हैं

राग भरकर रागिनी में
कोई अब गाता नहीं
पीठ दे बैठे हृदय दो
कोई समझाता नहीं
दुख किसी का, दुखी कोई
लोग ऐसे
खो गए हैं

सतह से उठते हुए पल
दृष्टि चौकस रख न पाए
पोटली उपलब्धियों की
छीन कोई ले न जाए
खेत, फसलें, बाड़ खाकर
सिपाही सब
सो गए हैं

साथ रहकर, साथ रहना
सीख जाते साथ ही तो
साथ दोनों हृदय होते
देह तो थी साथ ही तो
रेत गीली है अभी तक
नयन किसके
रो गए हैं

-राजा अवस्थी

इस सप्ताह

गीतों में-

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राजा अवस्थी

अंजुमन में-

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जगदीश पंकज

छंदमुक्त में-

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कविता गुप्ता

सवैयों में-

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डॉ. आशुतोष बाजपेयी

पुनर्पाठ में-

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रियाज शाह और सुभाष शर्मा

पिछले सप्ताह
१६ दिसंबर २०१३ के अंक में

गीतों में-
भारत भूषण

अंजुमन में-
संजू शब्दिता

छंदमुक्त में-
दिनकर कुमार

हाइकु में-
अश्विनी कुमार विष्णु

पुनर्पाठ में-
अनिल वर्मा और रजा किरमानी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   

 

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