प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित
 
पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

२८. १. २०१३

अंजुमन उपहार काव्य संगम गीत गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति
भक्ति सागर हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला

 रोशनी का तूर्य बन

मौन की भाषा समझ
चुपचाप रह,
मन व्यथा को खोल मत
चुपचाप सह!

बन शिखर
पर इस धरा से मेल रख,
बाँट अमृत
खुद गरल का स्वाद चख।
जलधि मत बन हो नदी-
चुपचाप बह!

वक्त की
आवाज है तू, चेतना बन,
हर दुखी मन की
तरल संवेदना बन
हौसला दे ‘साथ हैं‘-
चुपचाप कह!

मत बुझा
दीपक किसी का, सूर्य बन,
इस जगत की
रोशनी का तूर्य बन
बर्फ होकर आग-सा
चुपचाप दह!

--श्याम निर्मम

इस सप्ताह

गीतों में-

bullet

श्याम निर्मम

अंजुमन में-

bullet

अशोक रावत

छंदमुक्त में-

bullet

परमेश्वर फुँकवाल

लंबी कविता में-

bullet

कनक रेखा चौहान

पुनर्पाठ में-

bullet

प्रभात कुमार

खबरदार कविता में-

bullet

विश्वंभर शुक्ल

पिछले सप्ताह
२१ जनवरी २०१३ के अंक में

गीतों में-
रविशंकर मिश्र 'रवि'

अंजुमन में-
डॉ. भावना

छंदमुक्त में-
प्रभा शर्मा

दोहों में-
रघुविन्द्र यादव

पुनर्पाठ में-
माया भारती और मैट रीक

खबरदार कविता में-
ओम प्रकाश तिवारी

अंजुमनउपहार काव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्तिहास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतरनवगीत की पाठशाला

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है।

अपने विचार — पढ़ें  लिखें

Google
Loading

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०