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२७. २. २०१२

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लगे अस्मिता खोने

सूरज फिर
से हुआ लाल है

लगे अस्मिता खोने अपनी
धीरे धीरे गाँव

राजपथों के सम्मोहन में पगडंडी उलझी
भूख गरीबी अबुझ पहेली कभी नहीं सुलझी
अनाचार के काले कौए उड़-उड़
करते काँव

राजनीति की बाँहें पकडीं घेर लिया है मंच
बँटवारा बन्दर सा करते मिलजुल कर सरपंच
पश्चिम का परवेश पसारे
अंगद जैसा पाँव

छोड़ जड़ों को, निठुर शहर की बातों में आते
लोकगीत को छोड़ गीतिका पश्चिम की गाते
सीख रही हैं गलियाँ चलना
शकुनी जैसे दाँव

दंश सोतिया झेल रहीं हैं बूढ़ी चौपालें
अपनी ही जड़ लगीं काटने बरगद की डालें
ढूँढ रही निर्वासित तुलसी
घर में थोड़ी छाँव

-मनोज जैन 'मधुर'

इस सप्ताह

गीतों में-

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मनोज जैन मधुर

अंजुमन में-

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विज्ञानव्रत

छंदमुक्त में-

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संध्या सिंह

हाइकु में-

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हरदीप संधु

पुनर्पाठ में-

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जीवन शुक्ल

पिछले सप्ताह
२० फरवरी २०१२ के अंक में

गीतों में-
हरीश भादानी

अंजुमन में-
शहरयार

छंदमुक्त में-
पंकज त्रिवेदी

गौरवग्रंथ में-
पार्वती मंगल

पुनर्पाठ में-
बालकवि बैरागी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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