बहुत दिन के
बाद महका मन
सिलवटें कम की समय ने एक ठंडक
पी लहलहाने लगा उर का विपिन दंडक भी मुदित
चिड़ियों-सा प्रकृति के साथ चहका मन
बहुत दिन के
बाद महका मन
मिल गई पर्यावरण को शुद्ध
आक्सीजन इस तरह से कुछ हुआ ॠतु-चक्र
परिवर्तन डूबकर स्वप्निल सुरा-सरि आज बहका
मन
बहुत दिन के
बाद महका मन
-- पं. गिरिमोहन गुरु
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